Last modified on 2 नवम्बर 2009, at 00:38

खारिज नहीं होगा शब्द / मनीष मिश्र

अब नहीं है हमारे पास समय
शब्दों से खेलने का।
हमें बोलने है छोटे और सरल शब्द
और
तय करनी है अपनी भाषा
एक हथियार की तरह।

हमें संवर्धित करने है शब्द
अपनी रोजी-रोटी की तरह
हमें लगातार गुज़रना है
संवाद स्थापत्य की प्रक्रियाओं से

और बचाना है शब्दों को
खारिज होने से ।