मैंने स्वतंत्र कर दिया है खुद को
कि पत्थरों पर भी लिख दूँ 'प्यार'
असंगतियों को लिये चलूँ साथ
दुनिया भटक रही
जिस सच की तलाश में
नहीं अलग मेरा सच उससे
पर मैं भटक रहा हूँ
अपनी तरह से
दुनिया में रहकर
लड़ाई दुनिया से
नहीं भरती मुझमें
घृणा, क्रोध
बल्कि ले आती है समझ के
उस मोड़ पर
अपना न होते हुए भी जहाँ से
अपना दिखाई देता है सब
और खाली करते हैं जो हाथ मुझे
वही भरते भी हैं.