Last modified on 3 मार्च 2010, at 12:58

खिड़की / नीलेश रघुवंशी

देर रात
सो चुका है जब शहर
अँधेरे के बीच टिमटिमाता है तारा
खिड़की जो एक खुली हुई है
है साथ तारे के ।

कमरे और खिड़की के बीच का फ़ासला
कमरे में है उदासी बावजूद रोशनी के ।

भीतर खिड़की के क्या ?
शायद
डूबा हुआ हो कोई स्वप्न में
पढ़ी जा रही हा कोई किताब
सोच रहा है कोई सुबह के बारे में ।
यह भी हो सकता है
प्रतीक्षा में है कोई लड़की
जाग रही है माँ निगरानी में ।