खिड़की की धूप की तरह
तुम मेरी ज़िन्दगी में
आते हो
मैं छूने को
हाथ बढ़ाती हूँ
और तुम
साबुन के
बुलबुले की तरह
उड़ जाते हो
मैं सोचती हूँ
तुम्हारे पीछे _ पीछे
चुपके से आऊँ
मगर तुम हो कि
किसी भी लहर के साथ
तिनके की तरह बहकर
आगे निकल जाते हो
तुम्हारी चाह में
भटकती रहूँगी मैं
कहाँ - कहाँ
तुम यह क्यों
भूल जाते हो