खिड़की से
दिख रही थी दूर बहुत दूर
एक रोशनी जलती हुई
मैं उसे ठीक से
देखती-देखती
कि कविता
उसे लाने निकल चुकी थी।
(रचनाकाल : 1985)
खिड़की से
दिख रही थी दूर बहुत दूर
एक रोशनी जलती हुई
मैं उसे ठीक से
देखती-देखती
कि कविता
उसे लाने निकल चुकी थी।
(रचनाकाल : 1985)