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खिलाड़ी - २ / नरेश अग्रवाल

अचानक ही ऐसा हुआ था
जूड़ो कराटे का खेल देखकर
उसके भीतर खेल भावना जाग उठी थी
हर वक्त वह इसी अभ्यास में लगा रहता
जैसे वह गुरुत्वाकर्षण के सारे बल तोड़क़र
शरीर से हर मनमाना काम करवा लेगा
धीरे-धीरे उसके पाँव
लोहे की तरह सख्त हो गये थे
और रबर की तरह लचीले
अपने दोनों हाथ ऊपर ले जाकर
शाप देने की विचित्र मुद्रा में
वह दुश्मन पर निशाना साधता हुआ
कमर के बल फुर्ती से आगे बढ़ता था
जैसे अपनी माँद छोड़क़र
बाहर आया हुआ तूफान
और उसकी इस अदा में
एक संयम दिखता था
मानो उसका पूरा शरीर ही
अनुशासन में घुल गया हो
काम के प्रति उसकी यह ईमानदारी
मधुमक्खी की तरह हर पल
जीभ लपलपाये हुए
सामने बैठी नजर आती थी
और वह खिलाड़ी कम
एक शिकारी चीता
अधिक नजर आता था ।