यह गीत अधूरा है, आपके पास हो तो कृपया आप इसे पूरा कर दें
खिली सुनहरी
सुबह ग्रीष्म की
बिखरे दाने धूप के।
कंचन पीकर मचले बेसुध,
अमलतास के गात।
ओस हो गई पानी-पानी,
जब तक समझे बात।
रही बाँचती कुल अभियोजन,
अनजाने प्रारूप के ।
यह गीत अधूरा है, आपके पास हो तो कृपया आप इसे पूरा कर दें
खिली सुनहरी
सुबह ग्रीष्म की
बिखरे दाने धूप के।
कंचन पीकर मचले बेसुध,
अमलतास के गात।
ओस हो गई पानी-पानी,
जब तक समझे बात।
रही बाँचती कुल अभियोजन,
अनजाने प्रारूप के ।