झुनझुने जैसी बजती है
उसके खिलौनों की थैली
ढचरा गाड़ी के अस्थि- पंजर जैसी नहीं
उसमें अब सिर्फ़ पुर्ज़े रहते हैं
खेल ख्ेाल कर, खिलौनों में से ही
उसने ये पुर्ज़े ईजाद किये हैं
बड़े दुर्लभ, हाट-बाज़ार, में ढूंढने से भी नहीं मिलते
ये उसके हाथों की
पहली मौलिक कृति हैं
थैली, जिसे बन्दरिया के बच्चे सा चिपकाए रहती है
उसे वह खजाना मानती है
और बाकी सब चीज़ों को कबाड़
(खिलौनों की थैली और स्कूल के बस्ते में
कमल और रात का सम्बन्ध है)
दुनिया में हवा जैसे बची ही नहीं
ऐसा मुँह हो गया है हवाई जहाज का
पंख उड़ गए हैं,
पहिये ख़ुद ही लुढ़क रहे हैं
और गाड़ियाँ अपाहिज खड़ी हैं,
हाथी की सूंड चिड़िया की चोंच में फँसी हुई,
पिचकी गेंदें चाँद के गड्ढों की मानिंद,
ढोल फटा हुआ
गुफा समझकर उसमें रहने लगा है डायनासौर,
हाथ विहीन सुपरमैन
उसके हाथ रेलगाड़ी को धकाने चले गए हैं
वह अपनी छाती पर गुदे ै को देखकर
बिच्छु से अपना मुँह छुपा लेता है
उसकी थैली एक आसमान है
जिसमें पल-पल बदलते हैं बादलों के रूप- आकार
जैसे ही वह उंडेलती है ज़मीन पर
पते-ठिकाने बदले हुए लोग फिर मिलते हैं
अजनबी से घूरते हैं पहले
फिर धीरे -धीरे लौटने लगती है याददाश्त
और तब अचानक
लौटती हुई याददाश्त को चकमा दे जाते हैं सब।