खिल-खिल हँसते / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

कितनी प्यारी हंसी तुम्हारे,
ओंठों पर आई मुन्नी।

तीन साल है उमर तुम्हारी,
हंसना कैसे सीख लिया।
खिल-खिल हंसकर सारी दुनियाँ,
का मन कैसे जीत लिया।
ऐसा लगता है तुमने तो,
लोरी-सी गाई मुन्नी।

गिरकर उठना, उठकर गिरना,
झरना स्वर-सी किलकारी।
जितनी भी खुशियाँ हैं जग में,
किलकारी सब पर भारी।
जिसने भी हँसते देखा है,
सबको ही भाई मुन्नी।

नन्हें मुन्ना मुन्नी जग में,
जहाँ-जहाँ भी हँसते हैं।
वहाँ गमों के काले बादल,
नहीं ज़रा भी टिकते हैं।
लू के गरम थपेड़ों में भी,
लगती ठंडाई मुन्नी।

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