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खीजे गुरु / गणेश पाण्डेय

पहला बाण
जो मारा मुख पर
आँख से निकला पानी ।

दूसरे बाण से सोता फूटा
वक्षस्थल से शीतल जल का ।

तीसरा बाण जो साधा पेट पर
पानी का फव्वारा छूटा ।

खीजे गुरु
मेरी हत्या का कांड करते वक़्त
कि आखिर कहाँ छिपाया था मैंने
अपना तप्त लहू ।