कखनू नीचै, कखनू पीछै छी
रही-रही हरदमे सोचै छी
खुजली छेकै कि छेकै दिनाय
कपड़ा-लत्ता गेलै घिनाय।
नीन नै आवै खूब खुजलाय छै
हाथोँ केँ सौसे देह दौड़ाय छै
मनोॅ करै छै दियै जराय।
नीचै छियै तेॅ करै छै सपसप
हाथ पड़ला पर करै छै चपचप
कखमू पेटकुनियाँ, कखनू करबट
सौंसे राती दै छै जगाय।
मन करै गया में दै दौं पिण्ड
फनु नै ऐतै लौटी केॅ जिद
देखबै पत्रा, पंडित बोलाय।
पंडित जी कहोॅ केना भागतै भूत
फनु नैं लौटतै हौ जमदूत
करी दीॅ होम तौं मंतर पढ़ाय।
बोल गे खूजली कत्ते नोचबे
माथोॅ धरी केॅ कत्ते सुखैबे?
‘रानीपुरी’ देबो आगिन लगाय।