चूम लूं तेरी जुबां को मैं
तेरे ख़्यालों और बयां को मैं
नाज़ मुझको है बहुत
तेरे इलाही हुस्न पर
इल्म तेरे और फन पर
तेरे रूहानी फलक पर
शुक्रिया रब का
जो बख्शा नूर मुझको
किया है मालामाल उसने
मेरी अना के पाक दामन को।
खुदी इतनी बुलंद पर हुई है
खुदा खुद पूछता मुझसे
‘बता तेरी रज़ा क्या है’?
‘बता तेरी रज़ा क्या है’?