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खुद को निहारें / प्रताप नारायण सिंह

आओ
दर्पण में जरा
खुद को निहारें

एक्सरे सी बेधती पैनी नज़र वो
दूसरों की रूह तह जाती उतर जो

एक पल को
आओ हम
खुद में उतारें

वाह्य जग से हो विलग अन्तर भुवन में
क्या सही है, क्या गलत निरपेक्ष मन में

आज पल भर
आओ हम
कुछ तो विचारें

बंद कर अब दूसरों के दाग बीनना
अन्य के आँगन के खर-पतवार गिनना

आओ पहले
अपने
आँगन को बुहारें