Last modified on 8 जून 2017, at 18:14

खुली आंख रा सुपना / नरेन्द्र व्यास

जाणू हूं
इकसार नी रैवै
बगतो बगत
फेर भी देखूं सुपना

विगत पीढयां रौ दरद,
आधी होंवती
केड़ री लाचारी
भोळी मुळक में
बुसबुसांवतां
खुली आंख रा सुपना !