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खुली किताब / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

जिंदगी खुली किताब यारों
चाहे जो कोई पढ़ ले
आ जाये पसंद अगर तो
दिल में उसको मढ़ ले।
दो पहिए पर चलती है ये
खुशी-गम की गाड़ी
चित्मन भी ठंढी पड़ जाती
गरम खून की नाड़ी।
चार दिन की जिंदगी में
चाहे जो भी कर ले
जिंदगी खुली किताब यारों
चाहे तो इसे पढ़ ले।
प्यार से कोई रूठ जाता
कोई प्यार में जाता लुट
धागा कमजोर है इतना
झटके में जाता टूट।
ये दुनिया अनजान इतना
चाहे जितना भी बन ले
जिंदगी खुली किताब यारों
चाहे तो कोई पढ़ ले।
मानवता का पाठ पढ़ानें
कौन यहाँ पर आयेगा
छल-कपट में रहने वाला
क्या अब पाठ पढ़ायेगा।
बहुत कम इंसान बचे हैं
अपने को तुम गढ़ ले
जिंदगी खुली किताब यारों
चाहे तो कोई पढ़ ले।