Last modified on 3 अगस्त 2012, at 12:16

खुली खिड़की / शम्भु बादल

तुम्हारी खुली खिड़की से
देश लुट जाए
तुम्हें आनन्द है

तुम्हारी खुली खिड़की से
किसी का घर प्रकाशित हो
तुम्हें क्यों एतराज है ?