दो महीने बाद
फिर कलरव जगा
खरगोश आया
नया यूनीफार्म पहने
पहन कर स्कर्ट
बाँधे लाल फीता
लोमड़ी आयी
नया जूता पहन
आया हिरन
साठ दिन से
खिंचा आता विलम्बित
द्रुत में बदल कर
लगा झाला-सा बरसने
झनझना कर
साठ दिन का जमा सन्नाटा
वहाँ फिर टन्न से टूटा-
बजा घंटा
खेल वाले पीरियड का
झपटकर लोमड़ी भागी
उछल कर हिरन भागा
लदफँदाता भगा भालू
और सब भागे उड़ाते
धूल खुल
गया स्कूल...
दो महीने
खूब जम कर मौज मारी
यहाँ मोती और टामी ने
खूब सोये खूब भौंके
और पंजों से
मजे में खूब खोदी
लान की मिट्टी
न डंडे का न ढेले का
न डर था मार खाने का
फटफटा कर कान
अँगड़ाए जम्हाई ली
और आये सूँघते फिर चीन्हते
जानी अजानी महक
बस्तों की टिफिन की
दोस्तों की दुश्मनों की
किन्तु स्वागत में
सभी के लिए
उनकी पूँछ जाती झूल
खुल गया स्कूल...
बहुत दिन बाद फिर छेड़े गये
इस आम के पत्ते,
उस नीम की डालें,
हरहराया साठ दिन के बाद
फिर पीपल,
चिढ़ाई गयी कोयल
साठ दिन के बाद
टूटी नींद मेढक की
साठ दिन के बाद
फिर से रौशनाई में नहायी
मेज कोने की
श्यामपट के दाँत में
फिर किरकिरी
घिसी जाती चॉक ने
जमकर भरी
और चश्मा बहेन जी का
साठ दिन के बाद
फिर से स्नेह में भर
जगमगाया मुस्कुराया
नाक पर
कुछ और आगे सरक आया
कुछ डरे कुछ हुए उत्सुक
निकल आये देखने
क्या हो रहा है
लाल पीले और नीले
क्यारियों में ढेर सारे फूल,
खुल गया स्कूल
जबरदस्ती
आज नहलाए गये
फिर श्यामसुन्दर
साठ दिन के बाद
फिर नाखून काटे गये
आँजा गया काजल
खूब रोये खूब बिरझे
भागवन्ती के
निकाली गयीं फिर
दो पूँछ जैसी चोटियाँ
जुएँ मारे गये गिनकर
एक सौ सत्तर
इधर घबराहट मची है
डर लगा दो तीन दिन से-
गणित तो एकदम
गये हैं भूल,
खुल गया स्कूल
क्लास में खुसफुस उमगती
सुन रहे हैं
श्यामसुन्दर भागवन्ती-
कुछ गये शिमला मसूरी
गर्मियों में
कुछ गये थे दार्जिलिंग
कुछ दूर सिंगापूर-
मुँह झुकाये
कनखियों से सुन रहे हैं
श्यामसुन्दर भागवन्ती,
बढ़ गया था रेलभाड़ा
छुट्टियाँ उनकी यहीं गुजरीं
दो महीने खूब फाँकी
देहरी की धूल
चलो अच्छा ही हुआ
जो खुल गया स्कूल।