Last modified on 15 अक्टूबर 2017, at 17:55

खुशबुओं से रिश्ते / शशि काण्डपाल

ख़ुशबुओं से रिश्ते,
अहसास तो छोड़ते हैं,
जीने का
रास्ता नहीं...

बिखरते हैं फिजाओं में,
उडातें हैं खुशफहमियाँ,
लेकिन करने को,
यकीन नहीं छोड़ते...

लगते हैं बंद किताबों में,
इबारत की तरह,
कागज़ पर लेकिन,
अमिट लकीर नहीं छोड़ते...

टीस रहती है अधूरी,
धुंधली इबारत ना पढ़ पाने की,
और वो हर्फ़ ए सुकून नहीं छोड़ते...

मिट जाएँ ये दर्द,
जो समेट ले वों,
जो आये थे जहाँ में,
बस मोहब्बत बांटने,
अब वो हमनुमा ना रहे,
तो शिकवा कहाँ और गिले किससे...

तो कोई बताये उन्हें,
 कि लपेट ले जाओ...
 अपने पीछे यूं,
 बिखरी बिसात नहीं छोड़ते...
यूँ लौट आने की अधूरी आस नहीं छोड़ते...