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खुश्बू की आवाज / सोम ठाकुर

मुक्ति बीज बोए मीठे अनुबंध ने
ऐसी वर्षा की गुलाब की गंध ने

मौसम बदला थमी उमस को चीरकर
हवा हो गई नाम पूर्वा की जीत से
मिट्टी बोली खुशबू की आवाज़ में
सौंधी - सौंधी धरती गूँजी गीत से
ज़हरीली संध्याओं की संभावना
पतझर में पीली गुलाब की गंध ने

आँधी से ऊबी मरुथल की प्यास को
उठकर मेघ -मल्हारे बहलाने लगी
सूखे तिनके -से अंकुर के शीश को
रसवंती वेलाएँ सहलाने लगीं
लपटों से झुलसी हर नंगी डाल को
पत्ती -पत्ती दी गुलाभ की गंध ने

बड़ी ज़रूरी है फलवंती सर्जना
मीठा- मीठा जीवन जीने के लिए
दिन -दिन बढ़ते वांसती संघर्ष ने
लिखी वसीयत आज पसीने के लिए
चाँदीवाले इंद्रजाल को तोड़कर
अर्थ-कथा बांची गुलाब की गंध ने