खून का आँसू -
हमारी आँख में, ठहरा हुआ है ।
बाहरी हो तो करूँ तीमारदारी,
रिस रहे नासूर से तो अक्ल हारी ।
मरहमपट्टी से सरासर-
सच ये गहरा हुआ है ।
हो गई भाषा पहेली, उलटबाँसी,
आज खांटे व्यंग्य की सूरत रूआँसी ।
पूछता है काल हमसे,
शब्द का व्यक्तित्व क्यों दुहरा हुआ है ?
अन्न का रिश्ता नहीं अब आचरण से,
ज़िंदगी से कहीं ज़्यादा, साबका पड़ता मरण से ।
विधाता जनगणों का -
अंधा हुआ, बहरा हुआ है ।