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खेती खेडो रे हरिनाम की / निमाड़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    खेती खेड़ो रे हरिनाम की,
    जेम घणो होय लाभ

(१) पाप का पालवा कटाड़जो,
    आरे काठी बाहेर राल
    कर्म की फाँस एचाड़जो
    खेती निरमळ हुई जाय...
    खेती खेड़ो रे....

(२) आस स्वास दोई बैल है,
    आरे सुरती रास लगाव
    प्रेम पिराणो हो कर धरो
    ज्ञानी आर लगावो...
    खेती खेड़ो रे...

(३) ओहम् वख्खर जोतजो,
    आरे सोहम् सरतो लगावो
    मुल मंत्र बीज बोवजो
    खेती लुटा लुम हुई जाय...
    खेती खेड़ो रे...

(४) सत को माँडवो रोपजो,
    आरे धर्म की पयडी लगावो
    ज्ञान का गोला चलावजो
    सुआ उड़ी उड़ी जाय...
    खेती खेड़ो रे...

(५) दया की दावण राळजो,
    आरे बहुरि फेरा नी होय
    कहे सिंगा पयचाण जो
    आवा गमन नी होय...
    खेती खेड़ो रे....