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खेल-खेल में उड़ा / केदारनाथ अग्रवाल

खेल-खेल में उड़ा,
पहुँचा-
फट गया-
आकाश में
रंगीन गुब्बारा खुशी का।

जिसने
उड़ाया
आकाश में पहुँचाया
वह हुआ
फिर
गरीब बाप का
गरीब बेटा-
दुःख दर्द का चहेटा।

रचनाकाल: १८-१२-१९७९