कब मिलेगी आजादी
थिरकन है तुम्हारें पांवों में
और ऊर्जा देह में
शिथिल नहीं हो
सम्भलकर चलती हो
कहीं सच यह तो नहीं
कि तुम आजादी चाहती ही नहीं
जकड़ी जा चुकी हो
मेरी बेड़ियों में
मुझे पता है
तुम बंधन को
अपनेपन में बदल चुकी हो
इसमें भी शायद
खोज लेती हो
अपने होने को