Last modified on 21 फ़रवरी 2008, at 13:28

खोज / मधु शर्मा

इतने हसीन मंज़र थे

उनकी बरछियाँ चुभती रहीं

दिमाग़ उनकी झिलमिली में उलझा

मन भूला

और देह पर गिरा

सारा युद्ध


मैं एक हारी हुई योद्धा--

मैदानों में दूर तक

छितरी हैं देहें मेरी

मैं आत्माओं को खोजती हूँ

छिन्न-भिन्न ।