Last modified on 9 जनवरी 2011, at 17:29

खोपड़ों पर लट्ठ / केदारनाथ अग्रवाल

खोपड़ों पर
लट्ठ
जमीन पर
लठैत
चलते हैं,

जिंदगी पर
मौत
और
विनाश के
ठगैत
पलते हैं

रचनाकाल: ०९-०४-१९७०