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खोया हुआ एक रुपया / राग तेलंग

एक दिन मेरा एक रुपया कहीं खो गया
मैं मेरे उस एक रुपये की तलाश में शहर भर में घूमा

मगर वह ऐसे नदारद हुआ कि मेरे अचरज की सीमा नहीं थी

बड़े बाबू हर किसी से ठीक ही कहते थे
`दफ्तर से भोपाल टाकीज तक
ढूंढते-ढूंढते चले जाओगे
कहीं एक रुपया भी पड़ा नहीं मिलेगा ´

मैं सोचता रहा लकदक गाड़ियों के रेले में से गुज़रते हुए
कहाँ है मेरे हिस्से का वह एक रुपया ?
 
न्यू मार्केट के सामने से गुज़रा तो ध्यान आया
कभी खुल्ले न होने का बहाना कर
कितने तो दुकानदारों ने दबा लिया मेरा एक रुपया
 
कई बार पेट्रोल पंपों पर मीटर की हेराफेरी से डूब गया
मेरा एक रुपया

किसने उठाया होगा मेरा एक रुपया ?
किसकी जेब में जाकर कैद पड़ा होगा तन्हा मेरा एक रुपया !
कौन है वह सट्टेबाज
जो शेयर मार्केट में दुगुना करने के फेर में उसे दबाए बैठा है ?

अब मैं सरकार से गुहार लगाऊंगा
मेरे एक रुपये की तलाश करे और वापस दिलाए मुझे

नहीं तो लौटाए एक रुपये के बदले
मेरा किया हुआ श्रम, मेरा बहाया हुआ पसीना और
सत्यमेव जयते पर का मेरा विश्वास ।