अनबोली घुटन में पस्त
मेरा चेहरा
मेरा कमरा
मेरा दफ़्तर
मेरा देश
भीतर कौन है जो हवा को मथ रहा है
भीतर कोई है
जो हवा बारूद से
ज़मीन, खिड़की, सड़क को
आसमान तक ले जाकर
खोल देगा
अनबोली घुटन में पस्त
मेरा चेहरा
मेरा कमरा
मेरा दफ़्तर
मेरा देश
भीतर कौन है जो हवा को मथ रहा है
भीतर कोई है
जो हवा बारूद से
ज़मीन, खिड़की, सड़क को
आसमान तक ले जाकर
खोल देगा