Last modified on 4 दिसम्बर 2021, at 23:48

ख्वाबों में / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

गंधों में हरपल बहता हँ ।
गीत और गजलें कहता हूँ ।

छंद प्रतीक्षा करते रहते,
मैं तो ख्वाबों में रहता हूँ ।

कवि हूँ पर अदना सा नौंकर,
हर क्षण व्यंग्य प्रखर सहता हूँ ।

प्राणों में है घिरी अमावस,
ध्यान पूर्णिमा का करता हूँ ।

अपना जीवन है पलाशवन
काँटों में रंगत भरता हूँ ।

तन मन धन भोजन भटकन में,
रोज रोज जीता मरता हूँ ।

वासन्ती रस रास बुलाते
पतझारों से, पर डरता हूँ ।

तेरे बन्द दृगों के आगे,
याचक बना पड़ा दहता हूँ ।