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गंगाजल से पाँव पखारल / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गंगाजल से पाँव पखारल<ref>प्रक्षालन किया, धोया</ref> चनन पीढ़ा<ref>काठ का बना बेठने का आसन</ref> बिछावल, कि हाँ जी॥1॥
झारी के झारी गँगाजल पानी, सोने के कलस धरावल<ref>रखवाया</ref> कि हाँ जी।
बामे हलधर दाहिन जदुपत, सभ गोवारन<ref>ग्वाले</ref> सँघ आवल<ref>आये</ref> कि हाँ जी॥2॥
नारद आवल बेनु बजवात, बरम्हा बेद उचारे, कि हाँ जी।
सभ सुन्नरि सभ गारी गावत, मुसकत सीरी गिरधारी, कि हाँ जी॥3॥
बसमती चाउर के भात बनावल, मूँग रहर के दाल, कि हाँ जी।
कटहर, बड़हर, कद्दू, करइला, बैंगन के तरकारी, कि हाँ जी॥4॥
रतोआ, खटाइ, अचार, मिठाई, चटनी खूब परोसे, कि हाँ जी।
बारा, पापड़, मूँग, तिलौरी आउर दनौरी बनावल, कि हाँ जी॥5॥
बजका<ref>आलू, लौकी आदि का पतला, चिपटा टुकड़ा, जिस पर बेसन लपेटकर घी या तेल में तलते हैं</ref> बजुकी आउर पतोड़ा, सबहे भाँति बनावल, कि हाँ जी।
ऊपर से ढारल<ref>डाला, गिराया</ref> घीउ<ref>घी</ref> के चभारो<ref>काफी मात्रा में देना, जिससे रसोई भींग जाय</ref> धमधम धमके रसोइ, कि हाँ जी॥6॥
पंखा जे डोलवथि रुकमिनी नारी, आजु भोजन भल पावल, कि हाँ जी।
ऊपर दही आउ<ref>और</ref> चीनी बिछावल, लौंग सोपाड़ी<ref>सुपारी, कसैली</ref> खिलाइ, कि हाँ जी॥7॥
जेमन<ref>खा रहे है</ref> बइठल जदुपत, हलधर, जेमत<ref>खा रहे हैं</ref> हय मुसकाइ, कि हाँ जी।
जेमिए जुमुए<ref>खा-पीकर</ref> जदुपत आचमन कयलन, झारी गंगाजल पानी, कि हाँ जी॥8॥
पौढ़ल<ref>लेट गये</ref> सेज पोंछल मुँह रेसम, रुकमिनी चौर<ref>चँवर, सुरा गाय की पूँछ के बालों का गुच्छा, जो दुलहे या बड़े पुरुषों के मुँह पर डुलाये जाते हैं</ref> डोलावे, कि हाँ जी।
बड़ रे भाग<ref>भाग्य</ref> से जदुपत आवल, धन धन भाग हमारो, कि हाँ जी॥9॥
फिनु<ref>पुनः; फिर</ref> आयब इही<ref>इस</ref> मोर डगरिया, करूँ अंगेया<ref>आज्ञा, भोजन के लिए निमंत्रण</ref> अंगीकारे<ref>अंगीकार, स्वीकार</ref> कि हाँ जी।
नारद गावत, बरम्हा गूनत<ref>विचार रहे हैं</ref> धन रुकमिनी तोर भागे, कि हाँ जी॥10॥

शब्दार्थ
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