मैं उस समय और परिवेश में जन्मी
जब हवा में यात्रा करना स्वप्न सरीखा था
लोग जीवन में कम से कम एक बार अवश्य
इस स्वप्न को साध लेने का स्वप्न देखते थे
उन दिनों में जब
हवाई जहाज को निकट से देखना कौतूहल का विषय हुआ करता था
मैं नदी किनारे जाने के बहाने तलाशा करती थी
जब लोगो की दृष्टि आकाश में उड़ते जहाज पर टिकी होतीं
मैं नदी के सीने पर हिलकोरे लेती नाव देखा करती
नदी में पावं डालकर बैठना,
नदी के जल को स्पर्श करना
मुझे किसी रहस्य को भेदने-सा प्रतीत होता
अब जब हवा में यात्रा करना सुलभ हो चला
मैं अब भी,
पानी में हिलती नाव पर एक लंबी यात्रा करने का स्वप्न देखती हूँ
कोई एक गीत जितनी लम्बी यात्रा-
मनमीत जो घाव लगाए
उसे कौन मिटाए ...!