गर्व से कहो हम धर्म नगरी में रहते हैं
जंहा मन्दिरों की घंटियां अरुणिमा के द्वार खोलती है
जहां देव स्तुतियाँ हवा की तरंगों में उड़ती है
जहां गंगा जल से देव स्नान होता है
स्वर्ण सा प्रतीत होता है यह दृष्य ।
किन्तु दुखी कर देता है यहा, मंजर
जहां गंगा में सैकड़ो घरों का गन्दा पानी बहता है,
सारे षहर का कूड़ा गंगा में प्रवाहित होता है,
तब हम भूल जाते है यह गंगा जल मोक्ष दायीनी है
क्यों भूल जाते इससे हम पूजा अर्चना में देव स्नान कराते हैं ।
देव डोलियॉ सैकड़ो मील पैदल चलकर
गंगा स्नान के लिए आती है,
मृत्यु के द्वार पंहुचने वाले को भी
गंगाजल मोक्ष देने वाली है
विकट सघर्शों के बाद पाकिस्तान से भी
हिनदुओं के अस्थिकलश को भी गंगा जल का सानिध्य चाहिए ।
अखबरों के प्रथम पृश्ठ पर गंगा को
राश्ट्रीय नदी बनाने की खबर से हम गर्भित हुये
सरकार को धन्यवाद प्रस्ताव भी भेजा
घाटो का निर्माण भी हुआ
जब घाट बनाये गये उनकी तराई के लिए
नदी में जल नहीं था ।
घाट पर लगी सीमेन्ट दरकने लगी
लोहे की संगल पर जंक लग गया
ठेकेदार को चिन्ता अन्तिम भुगतान की है
घाट स्नान का नहीं मल विर्सजन का
स्थान बन गया कागजों में घाटों का निर्माण हुआ
खाते में सजने लगा गंगा नदी के सेवा में सर्मपण ।
पानी नही ंतो घाटों का निर्माण कयों ?
घर का विसर्जित पदार्थें के स्थान का पूजन क्यों ?
माँग करों तो गंगा में प्रवाहित कूड़े के,
स्थान के लिए नालियाँ केा बनाने के लिए
धार्मिक पर्वो पर ही सही, गंगा को स्वचन्द रूप में बहने के लिए ।
गंगा दर्षन से पहले व्यक्ति अपने अन्दर की आत्मा का
दर्षन करे अवलोकन करे बह क्या कर रहा है ।
अपनी श्रद्धा को कर्म रूप में समर्पित करें
स्वयं को अपषिश्ट पदार्थों को गंगा में न
विसर्जित करने की संकल्प लेकर
गंगा की लहरो से पवित्रता
का सन्देह लेकर चले
हम सभी जीवन की राहों में ।