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गंधज्वार (कविता) / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

वागीश्वरी झपताल

उमड़ा गन्धज्वार अर्थ का मधुमान,-
सम्पुटित शब्द के सुमन में अम्लान।

शब्द से भरा नभ का गहन यह विवर,
राग नवीन बोल-तान जिसमें मुखर,
रहे जो अहर्निश मेरे ध्यायमान।

अर्थ में ध्वनित जिसका परम आधार,
शब्द की परिधि को छन्द का विस्तार,
या कि यमत्कार का जो मिला वरदानं

अर्थ की ज्योति में चिन्मय चिन्त्यमान,
होने अश्रुलड़ी लगती स्यन्दमान,
शब्द में अर्थ जब होता अंगवान।

(20 नवंबर, 1974)