झुकी कहीं फूलवती वेणी कचनार की
चौतरफ़ा फैल गई गंध नमस्कार की ।
आँगन-सा लीप गई
चंचल आकृतियाँ
मौसम ने अँजुरी भर
सौंपीं स्वीकृतियाँ
अपनापन घोल गई संध्या शनिवार की ।
छू-छू संजीवनी
हवाओं के झोंके
सोते से जगा गए
गीत धमनियों के
तन्द्रा-सी टूट गई अनबोले तार की ।