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गगन हरा हुआ / अनिरुद्ध नीरव

पीली तितलियों से,
भरा हुआ
सारा नीला गगन
हरा हुआ

     तितलियाँ उतर आईं
     सरसों के खेत में
     अलग-अलग एक रंग
     सिमटे समवेत में

हर दाना सोन-सा
खरा हुआ

     तितलियाँ उतर आईं
     पहाड़ी ढलान पर
     जटगी के फूल नए
     थे जहाँ उठान पर

तैल कुम्भ उनका
गहरा हुआ

     तितलियाँ उतर आईं
     हल्दी की बाड़ में
     सोने की गाँठ बँधी
     एक-एक झाड़ में

परिणय का रंग
सुनहरा हुआ ।