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गजल जिन्दगी के गवाए त देतीं / मनोज भावुक


गजल जिन्दगी के गवाए त देतीं
दिया साधना के बराए त देतीं

कहाँ माँगतानी महल, सोना, चानी
टुटलकी पलनिया छवाए त देतीं

कहाँ साफ लउकत बा केहू के सूरत
तलइया के पानी थिराए त देतीं

बा जाये के सभका, त हम कइसे बाँचब
मगर का ह जिनिगी, बुझाए त देतीं

रही ना गरीबी, गरीबे मिटाइब
अरे, रउआ अबकी चुनाए त देतीं

लिखाई, तबे लूर आई लिखे के
मगर रउरा चिचरी पराए त देतीं

मचल आज 'भावुक' के दिल में बा हलचल
हिया में हिया के समाए त देतीं