गड़बड़ रामायण
जव से अखिया मिललै चार
तव सें अैइलौ कलियुग यार,
लोगवा डुवलों रहलौ ससुरारि के पियार मैं-
नजर करो धार में ना॥1॥
वेटा पातहू घरो में सुतलों
वुढ़वा खेतो में जाय के पड़लो,
वुढ़वा भांजै छौ कोदारी जाय के खेत में-
नजर केरो धार में ना॥2॥
साधु करै छौ विलास,
आरो चेलिया साथें हास,
साधू मौज उड़ावौ धन धरती आरो धान में-
नजरा केरो धार में ना॥3॥
जे छेलौ पतिवरता नारी,
हेकरो तनमा रहतौ उघारी
आरो वैश्या घुमौ रेशमी कुरता सलवार में-
नजरा केरो धार में ना॥4॥
कलि में व्राहमण दुराचारी
लोभी लंप्त आरो कामी,
आरो मांसो के टुकड़ा लेली दौड़ै छौ बाजार में-
नजरा केरो धार में ना॥5॥
कलि के महिमा कहलों नै जाई
झुटा करमो केरो पूजारी,
देवी देव पूजावौ मांटी मूरत गाछ में-
नजरा केरो धार में ना॥6॥