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गड्ढे में गाँव / ध्रुव शुक्ल

छिंदवाड़ा जिले के एक ग्राम पाताल कोट की स्मृति

अगर पहले से गड्ढा था,
गया क्यों गाँव वहाँ बसने?
बसा था पहले से यदि गाँव,
गई क्यों ज़मीं वहाँ धँसने?

धँसे होंगे पन्द्रह पच्चीस,
हुए क्यों बढ़कर वही पचास।
छोड़ देते गड्ढे का मोह,
लगाते और कहीं पर आस।

बिताए वहीं सैंकड़ों वर्ष।
नहीं जाना उनने उत्कर्ष।
कुएँ में कछुए से वे दिन।
विचारे हुए जगत से हीन।

न जाने यह सब कैसे हुआ !
ज़िन्दगी गड्ढे में गिरकर,
खोद लेती है अपना कुआँ।

द्वन्द्व का कोई ठौर न ठाँव।
तर्क के लम्बे-लम्बे पाँव।
सतह पर सूरज उगा है,
घिरा है अंधियारे में गाँव।