जिसमें सौंधी खुषबू है
मिट्टी के लिपे ऑगन की
चुल्हे पर बने गढवाली खाने की ।
खूब सूरत है वर्फ से ढकी पहाड़ियों की
मखमली बुग्याल की बुरॉस के फूलों की
वन में गाये बाजूबन्दों की षीतलता है ।
बॉझ के जड़ो के पानी की
सॉझ पड़े चलने वाली हवाओं की
षोरगुल सहित वातावरण की
परिश्रम से बहने वाले पसीने की
जोष और सम्पर्ण है
गढवीरों, का, विरांगनाओं का, श्रीदेव सुमन
चन्द्र सिंह गढवाली का गौरा देवी का माधों सिंह भण्डारी का ।
आज आवाष्यक्ता है
आग बढे हुये सपूतों की एक दृश्ठी की
गढ़वाल जन के जागरण की
प्राकृतिक धरोहर को संजोने की
आने वाली पीढ़ी के लिए सौगात की ।