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गढ़वळि दोहे / वीरेंद्र पंवार

यखुली रैगिन गाणि - स्याणि बूड बुड्या लाचार
गौं से इत्गा इ रिश्ता रै गे छंचर अर ऐतवार।

मयाळदु ऐ छौ शहर जनै मंख्यात का संग
चार दिनों का मेल मा रंगगे शहर का रंग।

सिकासौर्यून फौंस्यूंमा उलटा ह्व़ेगेनि काम
भाषा बूड़ी दादी सि कूणा मा ह्यराम।

गबदू दादा सोचणु च होणु छ तैयार
परधानी को मौक़ा मिलु ह्वेजा नया पार।