भारत में इसकी धूमधाम
छब्बीस जनवरी फिर आई
इसका प्रभात स्वर्णिम ललाम
वह याद दिलाया करता है
रावी तट पर जो प्रण ठाना
ऊँचे स्वर में था घोष हुआ
है हमें अग्निपथ अपनाना
होकर स्वाधीन जियेंगे हम
बलि हों चाहें अनगिनत प्राण
भारत में इसकी धूमधाम
छब्बीस जनवरी फिर आई
इसका प्रभात स्वर्णिम ललाम
वह याद दिलाया करता है
रावी तट पर जो प्रण ठाना
ऊँचे स्वर में था घोष हुआ
है हमें अग्निपथ अपनाना
होकर स्वाधीन जियेंगे हम
बलि हों चाहें अनगिनत प्राण