निखिल वेद करते जिन वरद देव का अर्चन,
होते जिनके पद-पùों में प्रणत देवगण।
अर्धचन्द्र है जिनके भालदेश का भूषण,
करता मैं उन निधियों के अधिपति का वन्दन।
उत्तम आदर्शों के संस्थापक गणनायक,
मंगलदायक बुद्धिविधायक, सिद्धविनायक।
महाविघ्नविध्वंसक, चिन्मय, एकदन्तधर,
नमस्कार है तुम्हें गणेश्वर, द्वन्द्वतिमिरहर।
एक मात्र यज्ञों के रक्षक, सर्वप्रीतिप्रद,
तुम अभीष्टप्रद प्रणवरूप, तुम सर्वकामप्रद।
सृजित विश्व के नामरूप तुमसे मंगलकर,
तुम प्रकाश में भव-विवेक के हो एकेश्वर।
नमन-यजन के भाजन सबसे प्रथम गजानन,
स्तवन तुम्हारा करने में होता कुंठित मन।
करता तुम्हें समर्पित शमीपत्र, दूर्वादल,
कंुकुम, हरिचन्दन, अक्षत, सिन्दूर, फूल-फल।
करे तुम्हारी कान्ति हृदय-पट को आलोकित,
अमृतवर्षिणी कला ज्ञान का स्रोत प्रवाहित।
सहज कृपा से हो जन-मन का ध्वान्त निवारण,
देवशक्ति से तप्त धरा पर दुख का प्रशमन।