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गणेशपुर की स्त्रियाँ / रेखा चमोली

 इन दिनों इन्हें खेतों में होना चाहिए था
बिजाड़ की गुडाई करते
मेड. बनाते
खरपतवार उखाडते
रोपाई की तैयारी में
इन सबसे व्यस्त दिनों में
पुष्पा दी की एक आवाज पर
दौडी चली आती हैं सब
गाँव का हर घर यथा सार्मथ्य मदद करता है
सडक किनारे सुलगाती हैं चूल्हा
कुशल हाथ गूंथते हैं आटा
फटाफट सिंकती हैं रोटियां
आलू प्याज की रसदार सब्जी
कभी पूरी, कभी खिचडी
स्वाद भूख में था
मिठास बनाने वालियों के हाथों में
चुपचाप सुन लेती हैं
थके हारे यात्रियों की आपबीती
सप्रेम खिलाती हैं जो बन पडा
उनका बैग उठाए जाती हैं दूर तक छोडने
बदले में पाती हैं आशीष
धमकाती हैं बदमाश ड्राइवरों ,खच्चर वालों को
मन तो बहुतों का किया होगा
पर सब काम छोड
मुसीबत में फंसे लोगों के लिए
सडक पर चूल्हा जलाने का साहस
हर किसी के बस की बात नहीं
अजब गजब हैं गणेशपुर की स्त्रियां
अजब गजब है उनकी पुष्पा दी।

(इस वर्ष 16-17 जून को उत्तराखंड में आयी भयंकर आपदा के दौरान उत्तरकाशी के गणेशपुर की स्त्रियों ने 8-10 दिनों तक वहां से गुजरने वाले यात्रियों को भोजन कराया व अन्य मदद की)