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गतिस्त्वम् / रामनरेश पाठक

मणिभूमि। उपत्यका की शाद्वली का मंच प्रकृत।
जटा-जूट। काकपक्ष। त्रिभंगी स्वरूपों की झाँकियाँ
गीतों भरी। आबनूस...आबनूस...आबनूस।
नृत्यरता अयस-कन्यायें। छंद मात्र छंद।
वन्य, वृही संचयन सेवित। पहाड़ी हवा, चाँदनी
की चटक, मयूर के पंख। काले बादल
आबनूस के पहाड़। उन्मादन अप्रमेय उन्मादन।
लय तान सन्नद्ध मुखर बाँसियाँ, मादल, उन्मत्त
पाँव और झूमर और आदिम लोग और सभ्यता.
आकाश की उमड़ी हुई छाती। गीत, नृत्य और रति।

दुकूल उकुल नदी। ताते आछे पाथारबादी। झांप
दिले डूबिआ मरिब। हाय रे केमन नदिया पार हब।
पतंग आकाश में। लटाई उलटी। केमन नदिया पार हब।
पतंग...पतंग और पतंग, और-और पतंग।
आरोह, अवरोह त्वरित। त्रीक्रम। कई क्रम। छूक
छूक छम-छम छूक-छूक छम छम छम छम।
आलाप।
जे करीबे नदी पार। तारे दीबे गलार हार। आधा
परान ताहार संपिब। हाय रे केमन नदिया पार हब।
लेह गजमोती हार। आमा के करह पार। इ नव यौवन
दान दिब। हाय रे हाय रे केमन नदिया पार हब।
द्रुत। प्लुत। द्रुत। प्लुत। द्रुत। प्लुत। द्रुत। प्लुत।
विनय लिखता है। दोनों कूल भरी नदी। मर्यादाओं
को तोड़ती हुई बाढ़। केमन नदिया पार हब।
कोई पार कर दे या नदी योवन की। ले ले गले का
हार। वरमाल्य। ले ले आधा प्राण निछावर में।
केमन नदिया पार हब। कोई पार कर दे यह नदी
समितीय विक्षेपों की। ले ले गजमुक्ता की माला।
ले ले इस नई यौवन का दान। केमन नदिया पार हब।
परंपरा। एब्सर्ड। अश्लील। आदिम। जंगली। परंपरा
रविशंकर का सितार। अज्ञात प्रवेश द्वार। संस्कृति।
धर्म और अर्थ और काम और मोक्ष।
वाद। दर्शन। सिद्धांत। युद्ध। युद्ध। युद्ध।
राते घुमाई नाहे। आमी आंखि दू टी राखी पथ पाने।
राते घुमाई नाहे। तोमार आसार टाने। राते घुमाई नाहे।
आमी गेथे छिलाम माला अतियतने। माला रहिलो।
तोला। ओ सेई आसार साने। तुमि आलेना।
दिलेना शांति पटाने। मने रहिलो गाथा। ओ गो
छिले मने ओ। राते घुमाई। राते घुमाई नाहे।
परंपरा। अनकल्चर्ड। विचफुल। नॉनसेंस। बर्बर।
नंदलाल के चित्र। अज्ञात प्रवेश द्वार। संस्कृति।
धर्म और अर्थ और काम और मोक्ष।
भाषण। प्रचार। कूट। दौत्य। अस्त्र। शस्त्र।
महानगर। क्लब। कॉफ़ी की मेज। बहसें और बहसें।
बातें। यौन-असहिष्णुता के फल-फूल। डाल-पात।
असित। देह-तनाव-द्वंद। मांस-तनाव-संघर्ष। पर्याय।
काम संध्यायें। रतिपूर्व। रति पर। दोनों स्थितियों में समान।
नीलू कहती है। तुम जागते थे। कहां थे सपनों में भी
दूर। निर्विघ्न। अतल में अवस्थित। परिश्रान्त। श्लथ।
सहकाम क्रीड़ाओं के साक्षी। बीजगुप्त। उत्तिष्ठ। जाग्रत।
प्राप्यवरान्निबोधत। असभ्य। अविश्वासों से ऊपर उठो।
दुखता है व्यंग सहते-सहते असित। विच्छेद की
ओर डग न भरो। अमल चुप। असित सह्य है।
आंदोलन। दल। गुट। परचम। नारे। शोर। शासन। विद्रोह।
असित जानता है। नीलू झूठ क्यों बोलती है। अमल के
प्रति पूर्णतया समर्पित नीलू असित से कहना
चाहती है। वह अपनी ओर से अमल के प्रति
विरक्त है। सन्यस्त है। तटस्थ है। वह जो अनुरक्तता
दिखती है वह असित के सुख के लिए जहां तक
असित को प्रिय है। असित कहता है। झूठ झूठ है।
आसक्ति, अनुरंजन, अनुरक्तता का छिपाव दुराव
कुंठा की कुंठा विकृति की विकृति रोग को जन्म देती है।
नीलू के समर्पण। शरीर-विनिमय और इस इलाके का
सब कुछ गोपन असित की डायरी जानती है। कहता
है नीलू फ्रिज्ड हो जाओगी, डेड कोल्ड। वंध्या।
पागल। उन्मादिनी। न्यूरोटिक। निम्फोटिक।
सहज होना ही जीने देता है। बराबर। हर स्थिति में।

नीलू का उन्माद सह्य है। बीज के भय से है इस राग कन्या को।
उन्मृदा नीलू बीज-अस्वीकृति की संस्कृति की एक नारी
इकाई है। अतृप्ता। सहभोगी सहित। बीज से भय?
अमृत मुस्कानों तुतले शब्दों से भय। हाँ, नीलू
कुमारी है। वह बराबर यही इंप्रेस करती है कि वह
अद्यतन अक्षता है। यौन-व्यवसाय की दुनिया का
एक घिसा-पिटा वाक्य। नीलू अकृष्टा। यही है
आकर्षण-प्रतीक्षा में खड़े पुरुषों को और क्या ?

अमल कहता है। नीलू ने उससे मालाएं बदली हैं। गंधर्व
विवाह। आँचल अंजलि लगाकर चरण छुए हैं। मैं
तुम्हारे ही प्रति केवल समर्पित थी। तुम्हारे स्वीकार से
सुखी हूं अब। चाँदनी में सोई तुम में डूबी धन्य हुई।
सब ऐसा ही कहते सुनते हैं। असित से नहीं कहती।
अमल असित से कहता है। नीलू असित का अपमान
करती है। अभियुक्त ठहराती है। अमल से कहती है।
असित को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है। असित
चला जाएगा तो उसका क्या होगा? असित हँसता है
इस छायावादिनी पर। बीज दायित्व असित ले लेगा।
नीलू चले चलती रहे। इतने कोष्ठकों का सरलीकरण !!!
सहज होना ही जीने देता है। बराबर। हर स्थिति में।

प्रयोग। प्रगति। श्लील। सभ्य। आधुनिक। प्रयोग।
विलास। श्वेत काम विलास। सहज। नई संस्कृति।
विचार। क्रिया। विचार। क्रिया। विचार। क्रिया।
विनय लिखता है। नीलू अजंता बने। खजुराहो बने।
भारत कहाँ है। घर कहाँ है। भारत कहाँ है।
झिर झिर पानी बहे। बहियाँ मरोड़ गेल। सेम जल
भेंटों न भेल। कोन अरसिक चुआं कूड़ गेल।
सेम जल भेंटों न भेल। चैत रे बैशाख मासे।
बड़ा रे पियास लागे। सेम जल भेंटों न भेल।
बालुकामयी नदी। उथला चुआं। बाहें भर आयीं।
किस अरसिक ने चुआं कूड़ा। सेम जल भेंटों न भेल।
दैव सत्ता! दैव सत्ता! दैव सत्ता! दैव सत्ता!

पंचमकार। चक्र पूजा। भैरवी। तंत्र। साधना। भुक्ति।
मुक्ति। संतप्तानाम् त्वमसि शरणम्। मां! मां!! मां!!!
योग। भक्ति। ज्ञान। कर्म। सन्यास। समाधिपाद।
साधनपाद। विभूतिपाद। कैवल्यपाद। द्रष्टा।
स्रष्टा। कर्ता। हंसः। हंसः। हंसः। हंसः। हंसः।
प्रणव। बीज। व्याहृति। कील। कवच। अर्गला !!!
मां। मां। मां। मां। मां। मां। मां। मां। मां। मां। मां।
संतप्तानाम् त्वमसि शरणम्। संतप्तानाम् त्वमसि शरणम्।
विनय लिखता है। लिखता है। लिखता है।
संस्कृति अपने अंतिम विश्लेषण में एक विराट बंधन है???