सूरज ने किरणे फैलायीं
पर मुझको तो नींद है आई
मम्मी कहती उठ जा बेटा
उठ तो मैं जाता लेकिन
बैठे बैठे लेता हूँ जम्हाई
काश ये सूरज कभी न निकले
मेरी तरह रजाई में छिप ले
मैं भी सोऊँ यह भी सोये
मीठे मीठे सपनो में खोये
करनी पड़े न कभी पढ़ाई
लेकिन कहाँ संभव यह भाई
तुझसे अच्छे तो चंदा मामा
कितना अच्छा करते ड्रामा
कभी बड़े, छोटे या आधे
कभी - कभी आधे से ज्यादे
नज़र आते कभी एकदम गोल
वो लगवाते स्कूल के कुंडे
तुम क्यूँ देते उनको खोल
गंदे सूरज मुझसे मत बोल
रोज-रोज वही स्कूल का झोल