गन्ध वेदना / जानकीवल्लभ शास्त्री

केसर-कुंकुम का लहका दिगन्त है
गंध की अनन्त वेदना वसन्त

चीर उर न और
धुंधलाए वन की
ओ अनचीती बाँसुरी

गीत या अतीत बुझे द्वीप-द्वीप का
मोती अनबिंधा मुंदी-मुंदी सीप का,

धूला-धूला वर्तमान
धूप-तपा तीखा
चीख़-चीख़कर
हँसना-रोना है सीखा

गोपन मन भावी का काँचनार है
कब फूले क्यों मुरझे बेकरार है

उजले दिन
हरख साँझ-झाँवरी
थके-थके पाँव
अभी बहुत दूर गाँव री

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