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गपशप-2 / दिविक रमेश

अगर मैं लीपूँ
तुमको अम्मा
ज्यों लीपती
तुम आँगन को ?

तो मैं भी
आँगन के जैसी
सुथरी बनकर
चमक उठूँगी ।

तब तो तुम को
हौले-हौले
सम्भल-सम्भल कर
छूना होगा
है न अम्मा ?

हाँ, चाहते
रहूँ साफ़ मैं
ध्यान तो तुमको
रखना होगा
जैसे रखते
आँगन का हम
है न मुन्ना ?