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गरीबिया के राज / बैद्यनाथ पाण्डेय 'कोमल'

गऊआँ देहतिया के गलियन गलिया में
बडुए गरीबिया के राज।
इहवें से उपजि-उपजि हीरा-मोतिया रे
बनि गइले अनकर ताज।
घरवा बा ढहल, धसल बाटे कतहूं रे
खपड़ा के नाम ना निशान।
छनियाँ-छपरवा से करेले गुजरवा रे
गउआँ के लोग अनजान।
करिया अछरिया बा भँइस बराबरे से
इहे बाटे गाँव के समाज।
पसवा में पइसा ना, खेत बा दू-चार काठा
ओहू पर रेटवा के भार।
ओकरा चुकावे हित लिहले महाजन से
करजा के बड़ भरमार।
दिन-रात ओहू पर उमउ़त चढि़ जाता
गरदन प सूदवा-बेआज।
एक त गरीबिया के अगिया भयानके रे
दूसरे बा निकसत आह।
बहरी-भीतरवो बा अगिया में धधकत
बचे के ना कवनो बा राह।
देखि के गरीबिया ई आवत गरीबियो के
हरदम मनवां में लाज।
बीते रात, दिन बीते सतुआ के पनिया प
उहो नाहीं मिले रोजे रोज।
उहे रात, उहे दिन बीति जाता उहवाँ रे
जहवाँ बा कुतवन के भोज।
दुई का जहान? भगवान बाड़े दुई का रे?
कुछ ना बुझात बाड़े आज।
फटही बिहिटिया बा सबकर डँड़वा में
सँउसे बा देहिया उधार।
सबकर धरवा में बाड़े हँसी खुशिया से
इहवा रे दरदिया के इहनी के जगवा में
कोई कर लीही अनदाज।
सगरो निराशा बाटे, हाय-हाय सगरो रे
कतहूं ना असरा के जोर।
भूखला प खाय गम, लगले पियसवा प
पीये रोज अँखिया के लोर।
शेष कुछ नाहिं छोड़े, लूटि पाटि लेबे नित
निठुर गरीबिया के बाज।
हँचिया बा ठावें-ठांवें, पँकिया बा ठावें-ठांवें
ठावें-ठांवें सड़ताड़े घूर।
बदबू उठत बाटे गड़हा-गुड्डहिया से
कतहूं भरल बाटे धूर।
दुनिया के कथवा कहनियां रे बनि जाला
गांव के गरीब के आवाज।
जहवां ना कबहूं परब-तेवहरवा प
मनवां में उठले उछाह।
नाहिं मधुमास के बहार बा सपनवों में
बस बरसतिया के दाह।
कहवां से सुख मिले उनका जिनिगिया में
जब किसमत अनराज।
अजहूं लडि़कवन के मंगला प रोटिया के
निकसेला बपवा के हूक।
अपना करमवां प लोरवा के ढारि-ढारि
करेला करेजवा के टूक।
कबहूं ना जनले ई लोगवा देहतिया के
कब भइले देशवा सुराज।
कहवां सुतल बाड़े देवता देहतिया के
कहवां सुतल बाटे भाग।
कहवां भुलाई गइले इहां के गगनवाँ के
सुमधुर अनुपम राग।
केई बतलाई अब गांव के ई मटिया में
कब लीही सुखवा बिराज?
गऊआं देहतिया के गलियन गलिया में
बडुए गरीबिया के राज।