Last modified on 26 जून 2013, at 13:07

गरीबी के दिनों में / मनोज कुमार झा

महँगी शर्ट पहनने के बाद दफ्तर नहीं
       मौसी के घर जाने की इच्छा होती है।
बहुत याद आती है उस दोस्त की
       जो छूट गया जामुन से गिरकर
अदल-बदल लेते थे जिनसे कपड़े।
महँगी शर्ट पहनने के बाद माँ को देखता हूँ
       कि कैसे खिलता है एक का सुख दूसरे के चेहरे पर
महँगी शर्ट पहनने के बाद पिता की तरफ देखता हूँ
       गया वक्त लौट नहीं सकता
       कह नहीं पाता एक शर्ट आपके लिए...