गरीब से मौसम, कितना हिसाब लेता है
सब्र का सावन, गर्म बरसात बना देता है।
आंहों से भले अपने तूफान उमड़ते हैं
मगर दर्द को भंवर सैलाब बना देता है
हर छंद का आयाम मेरा लाचार होकर
हंसी नग्मों को कैसे श्मशान बना देता है
अहले सियासत को आया तरस हम पर
ये सियासी हथकंडा बेकार बना देता है
मेरा इम्तिहान होता न, गर मैदान में होता
हजार साल का तसद्दुद लाचार बना देता है