उनके जीवन में कहाँ, कब कोई सबेरा था
जिंदगी गुजारा संघर्ष में, जहाँ अंधेरा था।
पते की बात ही करते रहे हमसफर बनकर
गलती बस इतने कि गरीबी ने उन्हें धेरा था।
उम्र से पहले शादी, दो बेटे, चार बेटियाँ
उनके सादगी से जीवन में बड़ा बखेरा था।
प्राइवेट नौकरी – कम वेतन – पढ़ाई – लिखाई
हर पल हर जगह ही समस्याओं का ढेरा था।
न छल – कपट,न बेईमानी,आदमी इंसान था
कर्ज में डूबा, उनको महाजनों ने पेरा था।
बेटियाँ जैसे – तैसे, ससुराल को चली गईं
बेटा भी अवारा , जैसे कोई सपेरा था।
फर्ज रिश्तों का निभाया अपना घर चलाया
थक हार कर बैठा, अब बुढ़ापे का फेरा था।